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- बृहदावश्यक भाष्य 4464 जिस संघ [गच्छ| में न सारणा' है, न वारणा' है और न प्रतिचोदना है; वह संघ, संघ नहीं है । अत: संयमाकांक्षी को उसे छोड़ देना चाहिए ।
१. कर्तव्य की सूचना २. अकर्तव्य का निषेध ३. भूल होने पर कर्तव्य के लिए कठोरता के साथ शिक्षा देना। 176. अभयदान
य स्वभावात्सुखौषिभ्यो, भूतेभ्यो दीयते सदा । अभयं दुःख भीतेभ्योऽभयदानं तदुच्यते ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 706]
- गच्छाचार पयन्ना टीका 2 अधिकार स्वभाव से ही सुख के अभिलाषी एवं दु:खों से भयभीत जीवों को जो अभय दिया जाता है, वह 'अभयदान' कहलाता है। 177. प्राणी दया श्रेष्ठतम
सर्वे वेदा न तत्कुर्युः सर्वे यज्ञा यथोदिताः। . सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च, यत्कुर्यात् प्राणिनां दया ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 706]
- धर्मरत्न प्रकरण - 56 सभी वेद, सभी यज्ञ और समस्त तीर्थाभिषेक जो कार्य नहीं कर सकते, वह कार्य प्राणियों की दया कर सकती है । 178. अनुपम - अभयदान
एकतः क्रतवः सर्वे, समग्रवर दक्षिणा । एक तो भयभीतस्य, प्राणिनः प्राणरक्षणम् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 706]
- धर्मरत्न प्रकरण - 55 एक ओर सारे यज्ञ हो और समग्र श्रेष्ठ दक्षिणा हो तथा एक ओर किसी भयभीत प्राणी के प्राणों की रक्षा हो; तो भी वे इसकी बराबरी नहीं कर सकते।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/102