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________________ 179. अभयदान श्रेष्ठ दत्तमिष्टं तपस्तप्तं, तीर्थसेवा तथा श्रुतम् । । सर्वाण्य भय दानस्य, कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 706] .. - धर्मरत्न प्रकरण - 54 अन्य इष्ट वस्तुओं का दिया हुआ दान, की हुई तपश्चर्या, तीर्थसेवा, शास्त्र-श्रवण - ये सब अभयदान की सोलहवीं कला को प्राप्त नहीं कर सकते। 180. जीवनदान महतामपि दानानां, कालेन क्षीयते फलम् । भीता भय प्रदानस्य, क्षय एव न विद्यते ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 706] - धर्मरत्न प्रकरण - 53 - दूसरे दानों से मनुष्य अस्थायी संतोष पा जाता है या कुछ देर के लिए उसका लाभ उठा सकता है; परन्तु अभयदान तो जिन्दगी का दान है । 181. अभयदान परम धर्म नहीं भूयस्तमो धर्मस्तस्मादन्योऽस्ति भूतले । प्राणीनां भयभीतानाम भयं यत्प्रदीयते ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 706] - धर्मरत्न प्रकरण 51 भयभीत प्राणियों को जो अभयदान दिया जाता है, उससे बढ़कर अन्य कोई धर्म इस भूमण्डल पर नहीं है । 182. विरले अभयदान दाता हेम धेनु धरादीनां दातारः सुलभाभुवि । दुर्लभ पुरुषोलोके, यः प्राणिष्वभयप्रदः ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/103
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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