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168. कामभोग - अतृप्ति
उवणमंति मरण धम्म अवितत्ता कामाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग | पृ. 677-678-679]
- प्रश्न व्याकरण1/4/15
अच्छे से अच्छे सुखोपभोग करनेवाले भी अन्त में काम-भोगों से अतृप्त रहकर ही मृत्यु को प्राप्त करते हैं। 169. इह परत्र नाश
इहलोए वि ताव नट्ठा, पर लोए वि नट्ठा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 679] .
- प्रश्न व्याकरण 1/4/16 अब्रह्म सेवन करनेवाले अर्थात् विषयासक्त व्यक्ति इस लोक में नष्ट होते हैं और परलोक में भी। 170. मित्र भी शत्रु
मित्ताणि खिप्पं भवंति सत्तू ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 679]
- प्रश्न व्याकरण 1/4/16 मैथुनासक्ति से मित्र शीघ्र ही शत्रु बन जाते हैं । 171. सम्यग्दर्शन विहीन
जे अबुद्धा महाभागा, वीरा असम्मत्तं दंसिणो । असुद्धं तेसिं परक्कंतं, सफलं होइ सव्वसो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 684] - एवं भाग 5 पृ. 60
- सूत्रकृतांग 1/8/22 सम्यकदर्शन से रहित परमार्थ को न जाननेवाले ऐसे लोक विश्रुत यशस्वी वीर पुरुषों का तपदान, अध्ययन, यम-नियम आदि में किया गया पराक्रम [वीर्य] अशुद्ध है, वे सभी तरह से वृद्धि अर्थात् सम्पूर्ण पराक्रम में निष्फल रहते हैं।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/100