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पूंजीभूत अंधकार के समान मलिन चित्तवाला दीर्घ संसारी जब देखो तब पाप का ही विचार करता रहता है । 147. साधु हृदय नवनीत - सम
नवणीय तुल्ल हियया साहू ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 585]
- व्यवहार भाष्य 7/215 साधुजनों का हृदय नवनीत [मक्खन] के समान कोमल होता है। 148. अप्रतिबद्ध - विचरण
असज्जमाणे अप्पडिबद्धेयावि विहरइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 594]
- उत्तराध्ययन 29/32 जो अनासक्त है, वह सर्वत्र निर्द्वन्द्व भाव से विचरण करता है। 149. निःसंगभाव - श्रेष्ठतम
निस्संगत्तेणं जीवे एगे, एगग्ग चित्ते ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 594]
- उत्तराध्ययन 29/32 नि:संगभाव से चित्त की एकाग्रता आती है। 150. निर्द्वन्द्वता से निःसंग
अप्पडिबद्धयाएणं, निस्संगत्तं जणयइ । __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 594]
- उत्तराध्ययन 29/32 . अप्रतिबद्धता से नि:संग भाव आता है । 151. अप्रमत्त
अप्पमत्ते समाहिते झाती ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 597] - आचारांग 1/9/2/67
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/95