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________________ श्रमण इन्द्रियों को नियन्त्रित कर समाहित अवस्था में ध्यान करे । 152. आचार्य-शुश्रूषा सुस्सूसए आयरिएऽप्पमत्तो । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 597] - दशवैकालिक 9/1/17 शिष्य अप्रमादी होता हुआ आचार्य भ. की सेवा-शुश्रूषा करें। 153. शुभ चिन्तन अकुसलमण निरोहो, कुसलमण उदीरणं वा । __- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 597] - एवं [भाग 6 पृ. 1154] - व्यवहार भाष्य पीठिका 77 मन को अकुशल = अशुभ विचारों से रोकना चाहिए और कुशल - शुभविचारों के लिए प्रेरित करना चाहिए । 154. अप्रमत्तभाव अप्पमत्ते जए निच्चं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 597] - दशवैकालिक 8/16 सदा अप्रमत्त भाव से साधना में प्रयत्नशील रहना चाहिए। 155. पराक्रम कहाँ ? अप्पमत्ते सया परिक्कमेज्जासि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 597] - आचारांगे 1/4/1/133 धीर साधक को अप्रमत्त होकर सदा अहिंसादि रूप धर्म में पराक्रम करना चाहिए। 156. ज्ञानी मुनि अणण्ण परमं णाणी णो पमादे कयाइ वि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 598] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/96
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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