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________________ ( ५ ) उत्तर भारत में तो जैन राजाओं तथा राज-पुरुषों का महत्त्व रहा ही, दक्षिण भारत में तो जैन राजाओं का राज्य लगभग एक हजार वर्ष तक रहा और उनके धर्म-प्रेम के कारण अनेक गौरवपूर्ण शिल्पकृतियाँ, मंदिर तथा मूर्तियाँ निर्मित हुईं। गंग, कदम्ब, पल्लव, चौलुक्य, राष्ट्रकूट नरेशों का काल वास्तव में भारतीय प्रजा के लिए सुख-सौजन्य का काल था। गुजरात का राजा कुमारपाल तथा प्रसिद्ध श्रेष्ठी वस्तुपाल तेजपाल को कौनसा इतिहास भूल सकता है । ___ केवल हिन्दू राजाओं पर ही जैनों का प्रभाव रहा हो सो बात नहीं। मुगल तथा मुस्लिम शासकों तथा बादशाहों पर भी जैनों का पर्याप्त प्रभाव रहा है । सम्राट अकबर जैन साधुओं से अत्यधिक प्रभावित था और यही कारण है कि मुस्लिम-शासनकाल में गाय, बैल, भैंस, भैसों आदि के बध पर रोक लगा दी थी। यह हम आसानी से समझ सकते हैं कि यह काम उन धर्मान्ध कट्टर गो-माँस भक्षक शासकों से करवाना कितना कठिन था, जबकि आज भारत में, ३० वर्ष की आजादी के बाद भी गोवध बन्दी नहीं हो पा रही है। मुस्लिम सुलतान, सूबेदार तथा शासक मूर्ति-पूजा के कट्टर विरोधी थे तथा मंदिरों को ध्वस्त कराना धर्म मानते थे, किन्तु ऐसे प्रमाण मिले हैं कि जैनों ने अपने कौशल तथा प्रभाव से तीर्थों तथा मन्दिरों की रक्षा की और उनको ध्वस्त न करने के फरमान भी जारी करवाने में सफल रहे। ऐसे धर्म-प्रेमी महानुभावों, श्रेोष्ठियों की गाथाएँ अब उपलब्ध हैं; किन्तु हमारा साम्प्रदायिक रुझान भी बड़ा अद्भुत है ! अपने ही घर के छिपे इन रत्नों को हम इसलिए नहीं अपनाते कि उनका सम्प्रदाय भिन्न रहा, गच्छ भिन्न रहा या प्रान्त भिन्न रहा। इस संकीर्ण वृत्ति के कारण समग्र जैन, इतिहास अंधेरे में रह गया और समाज को अपार हानि उठानी पड़ी। कितने लोग जानते हैं कि अकबर तथा जहाँगीर के शासन काल में जैनों ने कितने धार्मिक फरमान निकलवाये थे और धर्म-तीर्थों की रक्षा की थी। महाकवि बनारसीदास तो अकबर की मृत्यु का समाचार सुनकर ऊपर की मंजिल की खिड़की से सड़क पर गिर पड़े थे जिससे उनके सिर में गहरी चोट आ गयी थी। उनकी आत्मकथा से उस काल की अनेक महत्त्वपूर्ण बातें प्रकट होती हैं।
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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