________________
तीर्थरक्षक सेठ शान्तीदास
सेठ शान्तिदास ने जवाहरात के सिवा सराफी का कामकाज भी काफी बढ़ा लिया था । बादशाह के सराफ थे । बहुत बड़ी रकमें कर्ज के रूप में बादशाह शाहजहां को देते थे । बादशाह को जवाहरात का बहुत शौक था । उसने छः करोड़ खर्च करके मयूरासन नामक सिंहासन बनाया था । मोर के आकार के उस सिंहासन में मोरपंख में उत्तमोत्तम रत्न जड़े थे । वे रत्न एकत्र करने में शान्तिदास सेठ के परिश्रम का बहुत बड़ा हिस्सा था । इस कारण से बादशाह की सेठ शान्तिदास के प्रति कृपा दृष्टि थी । इसके अतिरिक्त कंदाहर के आक्रमण में बहुत खर्च होने से जब धन की जरूरत हुई तो वह कर्ज के रूप में सेठ शान्तिदास से लिया गया था । इसलिए सेठ शान्तिदास का बादशाह पर प्रभाव भी था ।
२२
सेठ शान्तिदास इस प्रभाव का उपयोग धर्म और तीर्थों के रक्षण में करते । वे जो घीर घार करते उसका उद्देश्य केवल ब्याज कमाना ही नहीं था, पर उसका लक्ष्य था मन्दिरों की रक्षा । बादशाह को कर्ज देते समय मन्दिर की रक्षा के लिए अभिवचन लेकर फर्मान निकलवाते ।
१६२९ - ३० में निकाला हुआ फरमान आज भी सेठ आणंदजी कल्याणजी की पेढ़ी में मौजूद है । जिसमें लिखा है
'नामदार' बादशाह को खबर दी गई है कि शत्रुंजय का पहाड़ और संखेश्वर तथा केशरियाजी के मन्दिर पुराने जमाने से मौजूद हैं । इसके सिवा तीन पौषधाशलाएं खम्भात में, एक सूरत में और एक राधनपुर में सेठ शान्तीदास की देखरेख और कब्जे में है । यह सब स्थान जैनियों