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________________ तीर्थरक्षक सेठ शान्तीदास २३ को दिये जाते हैं उसमें कोई भी दखलन्दाजी न करे।' इस फरमान में जहांगीर के फरमान से निर्मित अहमदाबाद के चिन्तामणि पार्श्वनाथ का भी उल्लेख है कि वहां भी कोई दखलन्दाजी न हो। शान्तिदास सेठ अहमदाबाद के नगरसेठ, बादशाह के अमीर ही नहीं थे, पर श्वेताम्बर समाज के नेता थे। बहुत से तीर्थों तथा मन्दिरों की वे व्यवस्था और प्रबन्ध करते थे। जैन समाज के प्रतिनिधि के रूप में बादशाह से फरमान प्राप्त करते और उसके लिए सम्पत्ति और शक्ति का व्यय करते। - पालीताणा जैनों का बड़ा और महत्त्वपूर्ण तीर्थक्षेत्र था । मुस्लिमों के राज्य में उसकी सुरक्षा की जैन समाज को बड़ी चिन्ता रहती थी क्योंकि सौराष्ट्र में राणकपुर और मांडवी मुगलों की छावनियां थीं। धर्मान्ध मुल्लाओं के हस्तक्षेप की सम्भावना रहा करती थी। वे बड़े असहिष्णु तथा दुराग्रही होते थे। इसलिए शान्तिदास सेठ शहाजहाँ से समय और अवसर देखकर फरमान प्राप्त करते । शाहजहाँ अकबर और जहाँगीर के समान उदार और सहिष्णु नहीं था फिर भी शान्तिदास सेठ के प्रयत्नों से १६५६ में एक फरमान में पालिताणा गांव इनाम के रूप में उन्हें देने की घोषणा की, जबकि १६५७ के फरमान में शत्रुजय परगणा दो लाख में शान्तिदास सेठ को वंश-परम्परा देने की बात लिखी है और इस फरमान को कायमी वंशपरम्परा का मान कर नई सनद न मांगने तथा किसी प्रकार कर न लगाने की बात थी। शान्तिदास सेठ अपनी उत्तरावस्था में अपना कारोबार पुत्रों को सौंपकर निवृत्त जीवन में धार्मिक कार्यों में ही अपना समय लगाते ।
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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