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तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास
सिद्धाचल की यात्रा के बाद शांतिदास सेठ के मन में संकल्प जगा कि अहमदाबाद के उपनगर में भव्य जिनालय का निर्माण कराया जाय । अपने बड़े भाई और परिवारवालों से चर्चा की। सभी ने शांतिदास सेठ की योजना का समर्थन किया। अपने गुरु श्री मुक्तिसागरजी के समक्ष अपना विचार रखा। मुनि मुक्तिसागरजी ने शांतिदास सेठ के संकल्प की सराहना की तथा इस धर्म कार्य के लिए अपना शुभ आशीर्वाद दिया। - मंदिर के लिए योग्य स्थान प्राप्त करने के लिए शहंशाह जहांगीर से परवाना लेने दिल्ली गये, पर बादशाह आगरा में थे, इसलिए वहां बादशाह से मुलाकात की। बादशाह जहाँगीर शांतिदास सेठ को देखते ही बड़े प्रसन्न हुए। __ शांतिदास सेठ ने कुशलक्षेम के बाद अपनी बात रखी। कहा"इबादत के लिए मंदिर बनाना चाहता हूँ, जिसके लिए जमीन चाहिए । यह जमीन का नक्शा है । सुबेदार साहब ने हुजूर के कदमों में सिफारिश भी की है, इस दरखास्त पर निगाह कर मिल जाय, यही अर्ज है।' ____ बादशाह ने नक्शा देखा। देखकर मीर मुंशी को सौंपा और शांतिदास सेठ से कहा, "रुक्का मिल जायगा, आप अपना काम शुरू कर दें।"
सेठ शांतिदास की व्यवस्था-शक्ति, सम्पर्क और प्रभाव अद्भुत था। काम यथासंभव जल्दी पूरा करने की अभिलाषा थी। धन की कोई कमी नहीं थी। वहीं आगरा में खुदाई का काम करनेवाले कुशल कारीगरों को बुलाकर अहमदाबाद भेजा। राजस्थान जाकर मकराणे के पत्थर खरीदकर अहमदाबाद भिजवाये। अहमदाबाद पहुँचकर अपनी पेढ़ियों को और परिचितों को पत्र लिखे कि बढ़िया से बढ़िया कारीगरों को भेजो। खंभात से अकीक के पत्थर खरीदे गये।