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________________ तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास ११ जब १६१२ में सिद्धाचल (शत्रुजय) की यात्रा पर गये तो देखा कि मंदिर जीर्ण हो गया है, उसका जीर्णोद्धार आवश्यक है, इसलिए वह काम शुरू करके ही लौटे। जब १६१९ तक कार्य पूरा हुआ तो अपने गुरु मुक्तिसागरजी से परामर्श किया और निश्चय हुआ कि संघसहित यात्रा कर प्रतिष्ठा महोत्सव किया जाय । अपने बड़े भाई से भी सलाह ली। उन दिनों यात्रा के लिए संघ निकालना साधारण बात नहीं थी। आज की तरह प्रवास में सुरक्षा नहीं थी। छोटे-बड़े जागीरदार, ठाकुर, चोर, डाकू आदि लूटने तथा डाका डालने का काम करते थे। लुटेरे और ठग का भी आतंक रहता था। यद्यपि अहमदाबाद का सूबेदार उनका मित्र था और उसने संघ की सुरक्षा के लिए ५०० सैनिक संघ के साथ देने का आश्वासन दिया था, फिर भी सेठ शांतिदास ने संघ निकालने की बात शहनशाह जहांगीर को लिखकर सुरक्षा व्यवस्था के लिए निवेदन किया। जहांगीर ने फरमान भेजकर हर तरह की सहायता संघ को देने की सूचना की। सूबेदार आजिमखाँ ने अपने अधिकारियों व सूबों को आज्ञा दी कि संघ को सब प्रकार से सहायता दी जाय और उसकी सुरक्षा की जाय । तीन हजार गाडियां, घोड़े आदि सवारियों का प्रबन्ध किया गया। संघ में कुल मिलाकर १५००० लोग थे और साथ में साधु-साध्वियां भी। __संघ पालिताणा पहुँचा। वहाँ रहने की व्यवस्था तम्बुओं में की गई। जिन मंदिरों का जीर्णोद्वार किया गया, वहां उत्सव किया। भगवान के मूल मन्दिर में दो गवाक्ष बनाये जो अब तक विद्यमान हैं। शुभ मुहूर्त पर नये बिम्बों की प्रतिष्ठा करवाई। शांतिदास सेठ ने स्वधर्मी सेवा व स्वामीवत्सल में खुले हाथों धन खर्च किया । वे केवल भारत के समृद्ध व्यक्ति ही नहीं थे, उदारदानी भी थे। वे ज्यों-ज्यों दान करते लक्ष्मी बढ़ती ही जाती थी।
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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