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148. जोगणिमित्तं गहणं जोगो मणवयणकायसंभूदो।
भावणिमित्तो बंधो भावो रदिरागदोसमोहजुदो।।
योग
जोगणिमित्तं (जोग)-(णिमित्त) 1/1] योग के कारण गहणं (गहण) 1/1
ग्रहण जोगो (जोग) 1/1 मणवयणकायसंभूदो [(मण)-(वयण)-(काय)- मन, वचन और काय
(संभूदो) भूकृ 1/1 अनि] सहित भावणिमित्तो [(भाव)-(णिमित्त) 1/1] भाव के कारण (बंध) 1/1
बंध भावो (भाव) 1/1
भाव रदिरागदोसमोहजुदो [(रदि)-(राग)-(दोस)- रति, राग, द्वेष और
(मोह)-(जुद) भूकृ 1/1 अनि] मोह से युक्त
बंधो
अन्वय- जोगणिमित्तं गहणं जोगो मणवयणकायसंभूदो भावणिमित्तो बंधो भावो रदिरागदोसमोहजुदो।
अर्थ- योग के कारण (कर्मों का) ग्रहण (होता है)। योग मन, वचन और काय-सहित (होता है)। भाव के कारण बंध (होता है)। भाव रति' (नौ कषाय), राग, द्वेष और मोह से युक्त (होता है)।
1.
हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद।
पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
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