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________________ 147. जं सुहमसुहमुदिण्णं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा। सो तेण हवदि बद्धो पोग्गलकम्मेण विविहेण।। सुहमसुहमुदिण्णं भावं करेदि अव्यय तो [(सुहं)+ (असुहं)+ (उदिण्णं)] सुहं (सुह) 2/1 शुभ असुहं (असुह) 2/1 अशुभ उदिण्णं (उदिण्ण) उत्पन्न हुए भूक 2/1 अनि (भाव) 2/1 भाव को (रत्त) भूकृ 1/1 अनि रागयुक्त हुआ (कर) व 3/1 सक करता है अव्यय (अप्प) 1/1 आत्मा (त) 1/1 सवि (त) 3/1 सवि उससे (हव) व 3/1 अक होता है (बद्ध) भूकृ 1/1 अनि बंधा हुआ [(पोग्गल)-(कम्म) 3/1] पुद्गल कर्म से (विविह) 3/1 वि अनेक प्रकार के अप्पा वह तेण हवदि बद्धो पोग्गलकम्मेण विविहेण अन्वय- रत्तो जदि अप्पा सुहमसुहमुदिण्णं भावं करेदि जं सो तेण विविहेण पोग्गलकम्मेण बद्धो हवदि। अर्थ- रागयुक्त हुआ जो आत्मा उत्पन्न हुए शुभ-अशुभ भाव को करता है, तो वह उस (भाव) से अनेक प्रकार के पुद्गल कर्म से बंधा हुआ होता है। (50) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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