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________________ 146. जस्स ण विज्जदि रागो दोसो मोहो व जोगपरिकम्मो। तस्स सुहासुहडहणो झाणमओ जायए अगणी।। जस्स जिसके नहीं होता है विज्जदि राग दोसो तथा (ज) 6/1 सवि अव्यय (विज्ज) व 3/1 अक (राग) 1/1 (दोस) 1/1 (मोह) 1/1 अव्यय [(जोग)-(परिकम्म) 1/1] (त) 6/1-7/1 सवि [(सुह)-(असुह)(डहण) 1/1 वि] (झाणमअ) 1/1 वि (जाय) व 3/1 अक (अगणि) 1/1 जोगपरिकम्मो तस्स सुहासुहडहणो योगों का परिणमन उसके/उसमें पुण्य-पाप कर्मों को जलानेवाली ध्यानमय उत्पन्न होती है झाणमओ जायए अगणी अग्नि अन्वय- जस्स रागो दोसो मोहो व जोगपरिकम्मो ण विज्जदि तस्स सुहासुहडहणो झाणमओ अगणी जायए। अर्थ- जिस (जीव) के राग (आसक्ति), द्वेष (शत्रुता), मोह (आत्मविस्मृति) तथा योगों (मन, वचन, काय) का परिणमन नहीं है उस (जीव) के/में पुण्य-पाप कर्मों को जलानेवाली ध्यानमय अग्नि उत्पन्न होती है। पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (49)
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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