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144. संवरजोगेहिं जुदो तवेहिं जो चिट्ठदे बहुविहेहिं । कम्माणं णिज्जरणं बहुगाणं कुणदि सो णियदं । ।
संवरजोगेहिं
जुदो
तवेहिं
चिट्टदे
बहुविहेहिं
कम्माणं
णिज्जरणं
बहुगाणं
कुदि
सो
यिदं
[ ( संवर) - (जोग) 3 / 2 ]
(जुद) भूकृ 1/1 अनि
(तव) 3/2
(ज) 1 / 1 सवि
(चिट्ठ) व 3 / 1 अक
(बहुविह) 3 / 2 वि
(कम्म) 6/2
(FUGGRUIT) 2/1
( बहुग) 6 / 2
'ग' स्वार्थिक
(कुण) व 3 / 1 सक
(त) 1 / 1 सवि
अव्यय
संवरात्मक योगों
सहित
तपों द्वारा
जो
प्रयत्न करता है
अनेक प्रकार के
कर्मों की
निर्जरा
अनेक प्रकार के
करता है
वह
निश्चयात्मक रूप से
अन्वय- जो संवरजोगेहिं जुदो बहुविहेहिं तवेहिं चिट्ठदे सो यिदं बहुगाणं कम्माणं णिज्जरणं कुणदि ।
अर्थ- जो संवरात्मक योगों सहित अनेक प्रकार के ( बचे हुए कर्मों को समाप्त करने के लिए) तपों द्वारा प्रयत्न करता है, वह निश्चयात्मक रूप से अनेक प्रकार के कर्मों की निर्जरा करता है।
1. तृतीया के साथ ' सहित ' अर्थ होता है।
पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ - अधिकार
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