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________________ 143. जस्स जदा खलु पुण्णं जोगे पावं च णत्थि विरदस्स । संवरणं तस्स तदा सुहासुहकदस्स कम्मस्स ।। जस्स जदा खलु पुण्णं जोगे पावं च णत्थि विरदस्स संवरणं तस्स तदा सुहासुहकदस्स कम्मस्स (ज) 6/1 सवि अव्यय (46) अव्यय (your) 1/1 (जोग) 7/1 (पाव) 1 / 1 अव्यय अव्यय (विरद) 6/1 वि ( संवरण) 1 / 1 (त) 6/1 सवि अव्यय [(सुह) + (असुहकदस्स) ] [(सुह) - (असुह) - (कद) भूक 6/1 अनि ] (कम्म) 6/1 जिसके जिस समय वाक्यालंकार शुभ परिणाम योग में अशुभ परिणाम और नहीं है संयमी के निरोध उसके उस समय पुण्य-पाप से निर्मित कर्म का अन्वय- जदा जस्स विरदस्स जोगे खलु पुण्णं च पावं णत्थि तदा तस् सुहासुहकदस्स कम्मस्स संवरणं । अर्थ - जिस समय जिस संयमी (श्रमण) के योग ( मन, वचन, काय ) में शुभ परिणाम और अशुभ परिणाम नहीं होता है उस समय उसके निर्मित कर्म का (संवर) निरोध ( होता है ) । - पाप से नोटः संपादक द्वारा अनूदित पुण्य-प पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ - अधिकार
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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