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________________ 122. जाणदि पस्सदि सव्वं इच्छदि सुक्खं बिभेदि दुक्खादो। कुव्वदि हिदमहिदं वा भुंजदि जीवो फलं तेसिं॥ जाणदि पस्सदि सव्वं इच्छदि सुक्खं बिभेदि दुक्खादो कुव्वदि हिदमहिद जानता है देखता है सबको इच्छा करता है सुख डरता है दुख से करता है (जाण) व 3/1 सक (पस्स) व 3/1 सक (सव्व) 2/1 सवि (इच्छ) व 3/1 सक (सुक्ख) 2/1 (बिभ) व 3/1 अक (दुक्ख) 5/1 (कुव्व) व 3/1 सक [(हिदं)+ (अहिद)] हिंदं (हिद) 2/1 वि अहिदं (अहिद) 2/1 वि अव्यय (भुंज) व 3/1 सक (जीव) 1/1 (फल) 2/1 . (त) 6/2 सवि उचित को अनुचित को अथवा भोगता है जीव भुंजदि जीवो फल उनके तेसिं · अन्वय- सव्वं जाणदि पस्सदि सुक्खं इच्छदि दुक्खादो बिभेदि हिदमहिदं वा कुव्वदि तेसिं फलं भुजदि जीवो। अर्थ- (जो) सबको जानता है, देखता है, सुख की इच्छा करता है, दुख से डरता है, उचित (क्रिया) अथवा अनुचित (क्रिया) करता है (और) उन (उचित-अनुचित क्रियाओं) के फल को भोगता है (वह) जीव (है)। पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (25)
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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