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121. ण हि इंदियाणि जीवा काया पुण छप्पयार पण्णत्ता । जं हवदि तेसु णाणं जीवो त्ति य तं परूवेंति ।।
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हिं इंदियाणि
जीवा
काया
पुण
छप्पयार
पण्णत्ता
जं
9.
हवदि
सु
णणं
जीवोत्त
य
तं परूवेंति
*
अव्यय
अव्यय
( इंदिय) 1/2
(जीव) 1 / 2
(काय) 1/2
(24)
अव्यय
[(छ) वि- ( प्यार ) * 1 / 2] (पण्णत्त) भूक 1/2 अनि (ज) 1/1 सवि
( हव) व 3 / 1 अक (त) 7 / 2 सवि
( णाण) 1 / 1 [(जीवो) + (इति)]
जीवो (जीव) 1 / 1
इति (अ) = ही
अव्यय
(त) 1 / 1 सवि (परूव) व 3 / 2 सक
नहीं है
निश्चय ही
इन्द्रियाँ
जीव
काय
किन्तु
छ प्रकार
कहे गये
होता है
उनमें
चैतन्य
जीव
ही
और
वह
कहते हैं
अन्वय
पुण तेसु जं णाणं तं जीवो त्ति परूवेंति ।
अर्थ- इन्द्रियाँ और छ प्रकार के (जो) काय कहे गये ( हैं ) ( वे) निश्चय ही जीव (द्रव्य) नहीं है, किन्तु उन (इन्द्रियों और कायों) में जो चैतन्य है वह (चैतन्य) ही जीव है। (आचार्य) ( इस अभिप्राय को) कहते हैं।
इंदियाणि य छप्पयार काया पण्णत्ता हि जीवा ण हवदि
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पृष्ठ 517 )
पंचास्तिकाय (खण्ड-2 ) नवपदार्थ - अधिकार