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________________ 120. एदे जीवणिकाया देहप्पविचारमस्सिदा भणिदा। देहविहूणा सिद्धा भव्वा संसारिणो अभव्वा य॥ क (एद) 1/2 सवि जीवणिकाया [(जीव)-(णिकाय) 1/2] जीव समूह देहप्पविचारमस्सिदा [(देहप्पविचारं)+ (आस्सिदा)] [(देह)-(प्पविचार) देह विवेचन पर 2/1-7/1] आस्सिदा (आस्सिद)भूकृ 1/2 अनि आश्रित भणिदा (भण) भूक 1/2 कहे गये देहविहूणा [(देह)-(विहूण) 1/2 वि] देह-रहित सिद्धा (सिद्ध) 1/2 भव्वा (भव्व) 1/2 वि मुक्ति के योग्य संसारिणो (संसारि) 1/2 वि संसारी अभव्वा (अभव्व) 1/2 वि मुक्ति के अयोग्य अव्यय और सिद्ध - अन्वय- एदे जीवणिकाया देहप्पविचारमस्सिदा सिद्धा देहविहूणा भणिदा संसारिणो भव्वा य अभव्या। - अर्थ-ये जीव समूह देह विवेचन पर आश्रित (होते हैं)। सिद्ध देह-रहित कहे गये (है)। संसारी (जीव) मुक्ति के योग्य और मुक्ति के अयोग्य (कहे गये हैं)। पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (23)
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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