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80.
णिच्चो
ाणवकास
ण
सावकासो
पदो
भेत्ता
खंधाणं
P
पि
य
णिच्चो णाणवकासोण सावकासो पदेसदो भेत्ता । खंधाणं पिय कत्ता पविहत्ता कालसंखाणं ।।
नित्य
नहीं
स्थान- रहि
कत्ता
पविहत्ता
कालसंखाणं'
1.
(90)
( णिच्च) 1 / 1 [(ण) + (अणवकासो)]
ण (अ) = नहीं अणवकासो (अणवकास)
1/1 fa
अव्यय
( स - अवकास) 1 / 1 वि
(पदेस) 5/1
पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय
(भेत्तु) 1 / 1 वि
(खंध) 6/2
अव्यय
नहीं
स्थान-सहित प्रदेश के कारण
भेद करनेवाला
स्कंधों का
अन्वय- णिच्चो णाणवकासो पदेसदो सावकासो ण खंधाणं भेत्ता पिय कत्ता कालसंखाणं पविहत्ता ।
अर्थ - (परमाणु) नित्य (है), (गुणों के लिए) स्थान -रहित नहीं ( है ), एक प्रदेशी होने के कारण ( अन्य प्रदेशों के लिए) स्थान-सहित भी नहीं (है), (एक प्रदेशी के कारण ही) स्कंधों का भेद करनेवाला भी (है), (स्कंधों का ) निर्माता (है) और (परमाणुओं ने) काल की गणनाओं को भिन्न किया ( है ) ।
भी
अव्यय
और
( कत्तु ) 1 / 1 वि
निर्माता
( पवित्त ) 1 / 2 भूक अनि
भिन्न कि
[ (काल) - ( संखा ) 6 / 2- 2/2] काल की गणनाओं को
कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। ( हेम - प्राकृत - व्याकरणः 3-134)
पंचास्तिकाय (खण्ड-1 ) द्रव्य - अधिकार