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________________ 78. आदेसमेत्तमुत्तो धादुचदुक्कस्स कारणं जो दु। सो णेओ परमाणू परिणामगुणो सयमसद्दो।। आदेसमेत्तमुत्तो मूर्तिक धादुचदुक्कस्स कारणं 4 64 किन्तु [(आदेस)-(मेत्त)- उपदेश मात्र से (मुत्त) 1/1 वि] [(धादु)-(चदुक्क) 6/1 वि] चार धातुओं का (कारण) 1/1 कारण (ज) 1/1 सवि जिन अव्यय (त) 1/1 सवि (णेअ) विधिकृ 1/1 अनि जानने-योग्य (परमाणु) 1/1 (परिणामगुण) 1/1 वि परिणमन स्वभाववाला __ [(सयं)+(असद्द)] सयं (अ) = स्वयं स्वयं असद्दो (असद्द) 1/1 वि शब्द-रहित वह णेओ परमाणु परमाणू परिणामगुणो सयमसद्दो अन्वय- परमाणू जो आदेसमेत्तमुत्तो दु धादुचदुक्कस्स कारणं परिणामगुणो सयमसद्दो सो णेओ। अर्थ- परमाणु जिन उपदेश मात्र से मूर्तिक (रूप, रस, स्पर्श, गंधवाला) (कहा गया है) किन्तु (जो) चार धातुओं (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु) का कारण (है), (जो) परिणमन स्वभाववाला (है), स्वयं शब्द-रहित (है) (किन्तु शब्द का कारण) (है) वह जानने-योग्य (है)। (88) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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