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77. सव्वेसिं खंधाणं जो अंतो तं वियाण परमाणू।
सो सस्सदो असद्दो एक्को अविभागि मुत्तिभवो।।
सव्वेसिं खंधाणं
समस्त स्कंधों में
अंतो
वियाण
(सव्व) 6/2+7/2 सवि (खंध) 6/2-7/2 (ज) 1/1 सवि (अंत) 1/1 वि (त) 2/1 सवि (वियाण) विधि 2/1 सक (परमाणु) 1/1 (त) 1/1 सवि (सस्सद) 1/1 वि (अ-सद्द) 1/1 वि (एक्क) 1/1 वि (अविभागी) 1/1 वि अनि [(मुत्ति)-(भव) 1/1 वि]
अंतिम उसको जानो परमाणु
परमाणू
सो
वह
सस्सदो
असद्दो
एक्को अविभागि मुत्तिभवो
शाश्वत शब्द-रहित एक विभाजन-रहित मूर्त भाव में रहनेवाला/होनेवाला
अन्वय- सव्वेसिं खंधाणं जो अंतो परमाणू तं वियाण सो सस्सदो असद्दो एक्को अविभागि मुत्तिभवो।
अर्थ- समस्त स्कंधों में जो अंतिम (भेद) (है) (वह) परमाणु (है) उसको जानो। वह (परमाणु) शाश्वत (है), शब्द-रहित (है), एक (प्रदेशी) (है), विभाजन-रहित (है) (और) मूर्त भाव (रूप, रस, गंध, स्पर्श गुण) में रहनेवाला/ होनेवाला (है)।
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'अविभागी' का 'अविभागि' किया गया है।
2.
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
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