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________________ 76. बादरसुहुमगदाणं खंधाणं पुग्गलो त्ति ववहारो। ते होंति छप्पयारा तेलोक्कं जेहिं णिप्पण्णं।। बादरसुहुमगदाणं बादर और सूक्ष्म में विभाजित स्कंधों के लिए खंधाणं पुग्गलो त्ति [(बादर) वि-(सुहुम)-वि (गद) भूक 4/2 अनि] (खंध) 4/2 [(पुगलो)+ (इति)] पुग्गलो (पुगल) 1/1 इति (अ) = इस प्रकार (ववहार) 1/1 (त) 1/2 सवि (हो) व 3/2 अक [(छ) वि-(प्पयार) 1/2] (तेलोक्क) 1/1 (ज) 3/2 सवि (णिप्पण्ण) भूकृ 1/1 अनि पुद्गल इस प्रकार व्यवहार ववहारो वे होति छप्पयारा तेलोक्कं होते हैं छ प्रकार तीन लोक जेहिं जिनसे संपन्न णिप्पण्णं अन्वय- बादरसुहुमगदाणं खंधाणं पुग्गलो त्ति ववहारो ते छप्पयारा होंति जेहिं तेलोक्कं णिप्पण्णं। अर्थ- बादर (स्थूल) और सूक्ष्म में विभाजित स्कंधों के लिए पुद्गल (शब्द का) व्यवहार (है)। इस प्रकार वे (पुद्गल) छ प्रकार के (बादरबादर, बादर, बादरसूक्ष्म, सूक्ष्मबादर, सूक्ष्म और सूक्ष्मसूक्ष्म) होते हैं, जिनसे तीन लोक संपन्न (86) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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