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________________ 75. खंधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणंति देसो त्ति। ___ अद्धद्धं च पदेसो परमाणू चेव अविभागी॥ स्कंध पूरे मिले हुए/संयुक्त सयलसमत्थं तस्स उसका द (खंध) 1/1 [(सयल)-(समत्थ) भूकृ 1/1 अनि (त) 6/1 सवि अव्यय (अद्ध) 1/1 वि (भण) व 3/2 सक [(देसो)+ (इति)] देसो (देस) 1/1 इति (अ) = इस प्रकार (अद्धद्ध) 1/1 वि और आधा अद्धं भणंति देसो त्ति कहते हैं देश अद्धद्धं इस प्रकार आधे का आधा/ चौथाई पदेसो अव्यय (पदेस) 1/1 (परमाणु) 1/1. अव्यय (अविभागी) 1/1 वि अनि फिर प्रदेश परमाणु परमाणू चेव अविभागी पादपूरक विभाजन-रहित अन्वय- सयलसमत्थं खंधं तस्स दु अद्धं देसो त्ति अद्धद्धं च पदेसो चेव अविभागी परमाणू भणंति। अर्थ- पूरे मिले हुए/संयुक्त (परमाणु) स्कंध (है), उस (स्कंध) का आधा (स्कंध) देश (है) फिर (उस स्कंध के) आधे का आधा/चौथाई (स्कंध) प्रदेश (है) और विभाजन-रहित परमाणु (है)। (जिनेन्द्र देव) इस प्रकार कहते हैं। पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (85)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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