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71. एक्को चेव महप्पा सो दुवियप्पो तिलक्खणो होदि।
चदु-चंकमणो भणिदो पंचग्गगुणप्पधाणो य।।
एक
एक्को चेव महप्पा
(एक्क) 1/1 वि अव्यय [(मह) वि-(अप्प) 1/1] (त) 1/1 सवि (दु-वियप्प) 1/1 वि (ति-लक्खण) 1/1 वि (हो) व 3/1 अक (चदु-चंकमण) 1/1 वि
दवियप्पो तिलक्खणो होदि चदु-चंकमणो
ही श्रेष्ठ आत्मा वह दो भेदवाला तीन प्रकारवाला होता है चार गतियों में परिभ्रमण करनेवाला कहा गया पाँच सर्वोपरि मुख्य भाववाला और
भणिदो पंचग्गगुणप्पधाणो
(भण) भूकृ 1/1 (पंच-अग्ग-गुण-प्पधाण) 1/1 वि अव्यय
य
- अन्वय- सो महप्पा चेव एक्को दुवियप्पो तिलक्खणो होदि चदुचंकमणो य पंचग्गगुणप्पधाणो भणिदो।
अर्थ- (छह द्रव्यों में आत्म द्रव्य मूल्यात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ है इसलिए आत्मा को महान कहा गया है)। आत्मा को विभिन्न दृष्टि से समझा जा सकता है-(1) वह श्रेष्ठ आत्मा ही एक (लक्षणवाला है) (चैतन्य स्वरूप)। (2) (वह) (जीव द्रव्य) दो भेदवाला (संसारी और मुक्त) (है)। (3) (वह) तीन प्रकारवाला है (कर्मचेतना, कर्मफलचेतना, ज्ञानचेतना से युक्त) (तथा) (उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य से युक्त) होता है। (4) (वह) (संसारी आत्मा) चार गतियों (मनुष्य, देव, नरक, तिर्यंच) में परिभ्रमण करनेवाला और (5) (वह) (कर्मसापेक्ष और कर्मनिरपेक्ष भाव सहित होता है अर्थात् सर्वोपरि पाँच मुख्य (औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक) भाववाला कहा गया (है)।
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संपादक द्वारा अनूदित
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
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