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70. उवसंतखीणमोहो मग्गं जिणभासिदेण समुवगदो।
णाणाणुमग्गचारी णिव्वाणपुरं वजदि धीरो।।
उवसंतखीणमोहो
मगं जिणभासिदेण
{[(उवसंत)-(खीण)(मोह)] 1/1 वि} (मग्ग) 2/1-7/1 [(जिण)-(भास) भूकृ 3/1-7/1] (समुवगद) भूकृ 1/1 अनि [(णाण)-(अणु) अ(मग्गचारी) 1/1 वि
समुवगदो णाणाणुमग्गचारी
दमन किया गया, नष्ट किया गया मोह मार्ग पर जिनेन्द्र द्वारा । उपदिष्ट भली प्रकार से गया ज्ञान के अनुरूप सम्मत मार्ग पर चलनेवाला मोक्ष नगर में जाता है धैर्यवान (व्यक्ति)
णिव्वाणपुरं वजदि
(णिव्वाणपुर) 2/1-7/1 (वज) व 3/1 सक (धीर) 1/1 वि
धीरो
अन्वय- उवसंतखीणमोहो जिणभासिदेण मग्गं समुवगदो णाणाणुमग्गचारी धीरा णिव्वाणपुरं वजदि।
अर्थ- (जिसके द्वारा) मोह (पूर्णरूप से) दमन किया गया (है) (या) नष्ट किया गया (है), (जो) जिनेन्द्र द्वारा उपदिष्ट (मार्ग पर) भली प्रकार से गया (है) (ऐसा) ज्ञान के अनुरूप (ज्ञान) सम्मत मार्ग पर चलनेवाला धैर्यवान (व्यक्ति) मोक्ष नगर में जाता है। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) 2. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
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पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार