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________________ 68. तम्हा कम्मं कत्ता भावेण हि संजुदोध जीवस्स। भोत्ता दु हवदि जीवो चेदगभावेण कम्मफलं।। तम्हा कम्म कर्ता कत्ता भावेण क्योंकि संजुदोध अव्यय इसलिए (कम्म) 1/1 कर्म (कत्तु) 1/1 वि (भाव) 3/1 भाव/परिणाम से अव्यय [(संजुदो)+(अध] संजुदो (संजुद) भूकृ 1/1 अनि संयुक्त अध (अ) = तब (जीव) 6/1 जीव के (भोत्तु) 1/1 वि भोक्ता अव्यय और (हव) व 3/1 अक होता है (जीव) 1/1 जीव [(चेदग) वि-(भाव) 3/1] सचेतन रीति से [(कम्म)-(फल) 2/1] (द्रव्य)कर्म फल को तब जीवस्स भोत्ता हवदि जीवो चेदगभावेण कम्मफलं अन्वय- तम्हा कम्मं जीवस्स कत्ता हि भावेण संजुदोध कम्मफलं दु जीवो चेदगभावेण भोत्ता हवदि। अर्थ- इसलिए (द्रव्य) कर्म जीव के (अशुद्ध भावों का) कर्ता (है) क्योंकि तब (अशुद्ध रागादिरूप) भाव/परिणाम से संयुक्त होता है (समय आने पर) (द्रव्य) कर्म (सुख-दुख) फल को (देते हैं) और जीव सचेतन रीति से (उसका) भोक्ता होता है। (78) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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