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67. जीवा पुग्गलकाया अण्णण्णोगाढगहणपडिबद्धा।
काले विजुज्जमाणा सुहदुक्खं देंति भुंजंति।।
जीवा (जीव) 1/2
जीव पुग्गलकाया [(पुग्गल)-(काय) 1/2] पुद्गलसमूह अण्णण्णोगाढ- [(अण्णण्ण)+(ओगाढगहणपडिबद्धा)] गहणपडिबद्धा
[(अण्णण्ण)-(ओगाढ) वि- परस्पर में गहरी (गहण)-(पडिबद्ध) पकड़ से संबद्ध भूकृ 1/2 अनि] (काल) 7/1
समय आने पर विजुज्जमाणा' (विजुज्ज) वकृ 3/1 अलग होते हुए
[(सुह)-(दुक्ख) 2/1] सुख और दुख (दे) व 3/2 सक देते हैं
(भुंज) व 3/2 सक भोगते हैं ___अन्वय- जीवा पुग्गलकाया अण्णाण्णोगाढगहणपडिबद्धा काले विजुज्जमाणा सुहदुक्खं देंति भुंजंति।
- अर्थ- जीव (और) (कर्म) पुद्गलसमूह (अनादिकाल से) परस्पर में गहरी पकड़ से संबद्ध (है)। (वे) (कर्म पुद्गलसमूह) समय आने पर अलग होते हुए सुख और दुख देते हैं और (जीव) भोगते हैं। 1. वि+जु+ज्ज+माण = विजुज्जमाण
सुहदुक्खं
भुंजंति
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
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