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________________ 62. कम्मं पि सगं कुव्वदि सेण सहावेण सम्ममप्पाणं। जीवो वि य तारिसओ कम्मसहावेण भावेण।। कम्म (द्रव्य) कर्म निश्चय ही अपने को करता है निजी स्वभाव से कुव्वदि । सेण सहावेण सम्ममप्पाणं (कम्म) 2/1 अव्यय (सग) 2/1 वि (कुव्व) व 3/1 सक (स) 3/1 वि (सहाव) 3/1 [(सम्म)+(अप्पाणं)] सम्मं (अ) = सम्यक् अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 (जीव) 1/1 अव्यय अव्यय (तारिसअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (कम्मसहाव) 3/1 वि (भाव) 3/1 जीवो वि सम्यक् स्वरूप को जीव भी निस्सन्देह वैसे ही तारिसओ कम्मसहावेण भावेण कर्म-स्वभाववाली प्रकृति से अन्वय-कम्मं पि कम्मसहावेण भावेण सगं कुव्वदि तारिसओ जीवो वि सेण सहावेण य सम्ममप्पाणं। अर्थ- (द्रव्य) कर्म निश्चय ही कर्म-स्वभाववाली प्रकृति से अपने को (ही) करता है (और) वैसे (ही) जीव भी निजी स्वभाव से निस्सन्देह (अपने) सम्यक् स्वरूप को (करता है)। (72) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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