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61. कुव्वं सगं सहावं अत्ता कत्ता सगस्स भावस्स । हि पोग्गलकम्माणं इदि जिणवयणं मुणेयव्वं । ।
कुव्वं
सगं
सहावं
अत्ता
कत्ता
सगस्स
भावस्स
que
हि
पोलकम्माणं
इदि
जिणवणं
मुणेयव्वं
(कुव्वं) वकृ 2/1 अनि
(सग) 2 / 1 वि
(सहाव ) 2 / 1
(अत्त) 1 / 1
( कत्तु ) 1 / 1 वि
(सग) 6/1 वि
(भाव) 6/1
अव्यय
अव्यय
[ ( पोग्गल ) - (कम्म) 6 / 2]
अव्यय
[( जिण) - (वयण) 1/1]
(मुण) विधि 1/1
करता हुआ
निजी
स्वभाव को
आत्मा
कर्ता
निजी
भाव का
नहीं
निश्चय ही
पुद्गल कर्मों का
इस प्रकार
जिन - वचन
समझा जाना चाहिये
अन्वय- सगं सहावं कुव्वं अत्ता सगस्स भावस्स कत्ता हि पोग्गलकम्माणं ण इदि जिणवयणं मुणेयव्वं ।
अर्थ-निजी स्वभाव को करता हुआ आत्मा निजी भाव का (ही) कर्ता ( है ) | ( वह) निश्चय ही पुद्गल - कर्मों का (कर्ता) नहीं ( है ) । इस प्रकार जिनवचन समझा जाना चाहिए।
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य - अधिकार
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