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________________ 42. दंसणमवि चक्खुजुदं अचक्खुजुदमवि य ओहिणा सहियं। अणिधणमणंतविसयं केवलियं चावि पण्णत्तं।। दंसणमवि [(दसणं)+(अवि)] दंसणं (दंसण) 1/1 दर्शन अवि (अ) = भी चक्खुजुदं [(चक्षु)-(जुद) भूकृ चक्षुसहित 1/1 अनि] अचक्खुजुदमवि [(अचक्खुजुदं)+(अवि)] [(अचक्खु)-(जुद) भूक अचक्षुसहित 1/1 अनि] अवि (अ) = और और अव्यय तथा ओहिणा (ओहि) 3/1 अवधि सहियं (सहिय) भूकृ 1/1 अनि सहित अणिधणमणंतविसयं [(अणिधणं)+(अणंतविसयं)] अणिधणं (अ-णिधण) 1/1 वि अन्तरहित [(अणंत)-(विसय) 1/1 वि] अनन्त विषयवाला केवलियं (केवलिय) 1/1 वि केवल संबंधी चावि [(च)+(अवि)] च (अ) = और अवि (अ) = पादपूरक पादपूरक पण्णत्तं (पण्णत्त) भूकृ 1/1 अनि कहा गया और अन्वय- दंसणमवि चक्खुजुदं अचक्खुजुदमवि ओहिणा सहियं य अणिधणं च अणंतविसयं अवि केवलियं पण्णत्तं। अर्थ- दर्शन भी चक्षुसहित और अचक्षुसहित, अवधिसहित तथा अन्तरहित और अनन्त विषयवाला केवल संबंधी (दर्शन) कहा गया (है)। (52) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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