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________________ 41. आभिणिसुदोधिमणकेवलाणि णाणाणि पंचभेयाणि। कुमदिसुदविभंगाणि य तिण्णि वि णाणेहिं संजुत्ते।। ज्ञान आभिणिसुदोधिमण- [(आभिणिसुद)+ केवलाणि (ओधिमणकेवलाणि)] [(आभिणि)-(सुद)-(ओधि)- मति, श्रुत, अवधि (मण)-(केवल) 1/2] मनःपर्यय और केवल णाणाणि (णाण) 1/2 [(पंच) वि-(भेय) 1/2] पाँच प्रकार कुमदिसुदविभंगाणि [(कु-मदि)-(कु-सुद)-] कुमति, कुश्रुत और (विभंग) 2/2] कुअवधि अव्यय तथा तिण्णि (ति) 2/2 वि तीनों को अव्यय पादपूरक णाणेहिं (णाण) 3/2 ज्ञानों के साथ (संजुत्त) भूक 2/2 अनि सम्मिलित हुए संजुत्ते अन्वय- णाणाणि पंचभेयाणि आभिणिसुदोधिमणकेवलाणि य कुमदिसुदविभंगाणि तिण्णि वि णाणेहिं संजुत्ते। अर्थ- ज्ञान पाँच प्रकार का (होता है)- मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल। तथा कुमति, कुश्रुत और कुअवधि (इन) तीनों को (पूर्वोक्त पाँच) ज्ञानों के साथ सम्मिलित हुए (जानो)। पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (51)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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