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________________ 40. उवओगो खलु दुविहोणाणेण य दंसणेण संजुत्तो। जीवस्स सव्वकालं अणण्णभूदं वियाणीहि।। उवओगो (उवओग) 1/1 खलु अव्यय दुविहो उपयोग वाक्यालंकार दो प्रकार ज्ञान और णाणेण य दसणेण संजुत्तो जीवस्स सव्वकालं दर्शन [(दु) वि-(विह) 1/1] (णाण) 3/1 अव्यय (दसण) 3/1 (संजुत्त) भूक 1/1 अनि (जीव) 6/1 [(सव्व) सवि-(काल) 2/1-7/1] [(अणण्ण) वि-(भूद) भूक 2/1 अनि] (वियाणीहि) विधि 2/1 सक अनि सहित जीव का सब काल में अणण्णभूदं एकमेक हुए वियाणीहि जानो अन्वय- जीवस्स उवओगो दुविहो णाणेण य सणेण संजुत्तो खलु सव्वकालं अणण्णभूदं वियाणीहि। अर्थ- जीव का उपयोग दो प्रकार का (है)- ज्ञान-सहित (ज्ञानोपयोग) और दर्शन-सहित (दर्शनोपयोग) (है)। (जीव के साथ) सब काल में एकमेक हुए (उपयोग को) जानो। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) (50) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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