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37. सस्सदमध उच्छेदं भव्वमभव्वं च सुण्णमिदरं च।
विण्णाणमविण्णाणं ण वि जुज्जदि असदि सम्भावे।।
सस्सदमध
उच्छेदं भव्वमभव्वं
च
सुण्णमिदरं
[(सस्सद)+ (अध)] सस्सदं (सस्सद) 2/1 वि शाश्वत को अध (अ) = और
और (उच्छेद) 2/1
नाश को [(भव्वं)+ (अभव्वं)] भव्वं (भव्व) 2/1 वि भव्य को अभव्वं (अभव्व) 2/1 वि अभव्य को अव्यय
और [(सुण्णं) + (इदरं)] सुण्णं (सुण्ण) 2/1 वि शून्य को इदरं (इदर) 2/1 वि विपरीत (पूर्ण) को अव्यय
और [(विण्णाणं)+(अविण्णाणं)] | विण्णाणं (विण्णाण) 2/1 वि ज्ञान को । अविण्णाणं (अविण्णाण) 2/1 वि अज्ञान को अव्यय
नहीं अव्यय (जुज्ज) व 3/1 सक जोड़ता है (असदि) 7/1 वि अनि अभाव होने पर (सब्भाव) 7/1
अस्तित्व में
च . विण्णाणमविण्णाणं
भी
जुज्जदि असदि सब्भावे
अन्वय- सब्भावे असदि सस्सदमध उच्छेदं भव्वमभव्वं च सुण्णमिदरं च विण्णाणमविण्णाणं ण वि जुज्जदि ।
अर्थ- अस्तित्व में (जीव का) अभाव होने पर (जीव के) (द्रव्यरूप से) शाश्वत को और (पर्यायरूप से) नाश (होने) को, भव्य (मोक्षगामी) को
और अभव्य (मोक्ष के अयोग्य) (होने) को, शून्य को और विपरीत (पूर्ण को), ज्ञान को और अज्ञान को (कोई) भी नहीं जोड़ेगा। 1. हेम-प्राकृत-व्याकरणः 4/109
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
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