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38.
कम्माणं
फलको
एक्को
कज्जं
तु
णाणमध
एक्को चेदयदि
जीवरासी
चेदगभावेण
तिविहेण
कम्माणं फलमेक्को एक्को कज्जं तु णाणमध एक्को ।
चेदयदि
जीवरासी
चेदगभावेण
तिविहेण ।।
1.
(48)
(कम्म) 6/2 [(फलं) + (एक्को)]
फलं (फल) 2/1
एक्को (एक्क) 1 / 1 वि
(एक्क) 1 / 1 वि
(कज्ज) 2/1
अव्यय
[ ( णाणं) + (अध)]
गाणं (जाण) 2/1
अध (अ) = और
( एक्क) 1 / 1 वि
(चेदयदि) व 3 / 1 सक अनि
[(जीव) - (रासि) 1/1] [(चेदग) वि -
(भाव) 3 / 1-7 / 1 ]
[(fa) fa-(fag) 3/1]
कर्मों के
फल
कोई
कोई
कर्म
और
ज्ञान
और
कोई
अनुभव करता है जीवों का समूह
चेतनावाला जीव,
अन्वय- एक्को जीवरासी कम्माणं फलमेक्को कज्जं तु एक्को णाणमध चेदयदि चेदगभावेण तिविहेण ।
अर्थ- कोई जीवों का समूह (तो) (केवल) कर्मों के ( सुखदुखरूप ) फल का (अनुभव करता है) और कोई (जीवों का समूह) (इष्ट-अनिष्ट) कर्म का (अनुभव करता है) और कोई (जीवों का समूह ) (केवल) ज्ञान का अनुभव करता है। (इस प्रकार) चेतनावाला जीव (अपने ) स्वरूप में/अस्तित्व में तीन प्रकार (कर्मफल, कर्म और ज्ञान ) से ( वर्णित है ) ।
स्वरूप में/अस्तित्व में
तीन प्रकार से
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। ( हेम - प्राकृत - व्याकरणः 3-137 )
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य - अधिकार