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________________ 35. जेसिं जीवसहावो णत्थि अभावो य सव्वहा तस्स। ते होंति भिण्णदेहा सिद्धा वचिगोयरमदीदा।। जेसिं होंति (ज) 6/2-7/2 सवि जिनमें जीवसहावो [(जीव)-(सहाव) 1/1] (द्रव्य) प्राण-धारण स्वभाव णत्थि अव्यय नहीं है अभावो (अभाव) 1/1 सर्वथा अस्तित्वरहित/ अनुपस्थित अव्यय किन्तु सव्वहा अव्यय बिल्कुल तस्स (त) 6/1 सवि उसका (त) 1/2 सवि (हो) व 3/2 अक होते हैं भिण्णदेहा [(भिण्ण) भूकृ अनि- विछिन्न देहवाले (देह) 1/2 वि] सिद्धा (सिद्ध) 1/2 सिद्ध वचिगोयरमदीदा [(वचिगोयरं)+ (अदीदा)] (वइ) वचिगोयरं (वचिगोयर) 2/1 वाणी की पहुँच को अदीदा (अदीद) 1/2 भूकृ अनि पार किये हुए/ __शब्दातीत अन्वय- जेसिं जीवसहावो सव्वहा णत्थि य तस्स अभावो ते सिद्धा होंति भिण्णदेहा वचिगोयरमअदीदा। अर्थ- जिनमें (संसारी जीवों की तरह) (कर्मजनित) (द्रव्य) प्राणधारण-स्वभाव बिल्कुल नहीं है किन्तु (जिनमें) उसका (मूल चेतन-स्वभाव) सर्वथा अस्तित्वरहित/अनुपस्थित (नहीं है) वे सिद्ध हैं (जो) विछिन्न देहवाले (तथा) वाणी की पहुँच को पार किये हुए/शब्दातीत (हैं)। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) नोटः संपादक द्वारा अनूदित देखें गाथा 27 से 30 पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (45)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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