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________________ 34. सव्वत्थ अत्थि• जीवो ण य एक्को एक्का एक्कडो सव्वत्थ अस्थि जीवो ण य एक्को एक्ककाए एक्कट्ठो । अज्झवसाणविसिट्ठो चेट्ठदि मलिणो रजमलेहिं । । चेदि मलिणो रजमलेहिं अव्यय (अस) व 3/1 अक (जीव) 1/1 अव्यय अज्झवसाणविसि [ ( अज्झवसाण) - (विसिह) भूक 1 / 1 अनि (चेट्ठ) व 3/1 अक (मलिण) 1/1 वि [ (रज) - (मल) 3 / 2] अव्यय (एक्क) 1/1 वि [ ( एक्क) वि - (काअ ) 7/1] [(aah) fa-(318) 1/1] (44) सभी जगह/पर्यायों में रहता है जीव नहीं परन्तु समरूप एक शरीर में एकरूप/उसी पर्याय रूप मानसिक संकल्पों से युक्त रहता है मलिन कर्मधूलरूपी मैल से अन्वय- जीवो एक्ककाए सव्वत्थ एक्कट्ठो अस्थिय एक्को अज्झवसाणविसिट्ठो रजमलेहिं मलिणो चेट्ठदि । अर्थ - (संसारी) जीव एक शरीर में सभी जगह / पर्यायों में एकरूप / उसी पर्यायरूप (होकर) रहता (है), परन्तु ( वह) समरूप नहीं ( है / होता है)। (जीव जब) (उस पर्याय में) (रागद्वेषात्मक) मानसिक संकल्पों से युक्त (होता है) (तब) कर्मधूलरूपी मैल से मलिन रहता है। • नोटः 'अत्थि' अस्तित्वसूचक अव्यय के रूप में भी माना जाता है। पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य - अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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