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________________ 33. जह जह पउमरायरयणं खित्तं खीरे पभासयदि खीरं । तह देही देहत्थो सदेहमेत्तं पभासयदि । । पउमरायरयणं खित्तं खीरे भासयदि खीरं तह देही देहत्थो सदेहमेत्तं भासयदि अव्यय [ ( पउमराय) - ( रयण) 1 / 1 ] (खित्त) भूकृ 1 / 1 अनि (खीर) 7/1 (पभास+य) व प्रे 3/1 सक (खीर) 2/1 अव्यय (देहि) 1/1 ( देहत्थ ) 1 / 1 वि [( स ) वि - ( देहमेत्त) 2 / 1] ( पभास + य) व प्रे 3 / 1 सक जिस प्रकार लाल रत्न डाला हुआ दूध में प्रकाशित करता है अन्वय- जह खीरे खित्तं पउमरायरयणं खीरं पभासयदि तह देहत्थो -अधिकार दूध को उसी प्रकार जीव देह में स्थित अपनी देहमात्र को ही प्रकाशित करता है देही सदेहमेत्तं पभासयदि । अर्थ - जिस प्रकार दूध में डाला हुआ लाल रत्न (अपनी प्रभा से) दूध को प्रकाशित करता है उसी प्रकार देह में स्थित जीव अपनी देहमात्र को ही प्रकाशित करता है। पंचास्तिकाय (खण्ड- 1 ) द्रव्य - 3 (43)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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