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31. अगुरुलहुगा अणंता तेहिं अणंतेहिं परिणदा सव्वे।
देसेहिं असंखादा सियलोगं सव्वमावण्णा।।
अगुरुलहुगा अणंता
अगुरुलघुगुण से युक्त अनन्त
तेहिं
उन
(अगुरुलहुग) 1/2 वि (अणंत) 1/2 वि (त) 3/2 सवि (अणंत) 3/2 वि (परिणद) भूकृ 1/2 अनि (सव्व) 1/2 सवि (देस) 3/2 (असंखाद) 1/2 वि [(सिय) अ-(लोग) 2/1]
अनन्त के द्वारा रूपान्तरित
अणंतेहिं परिणदा सव्वे देसेहिं असंखादा सियलोगं
समस्त
प्रदेशों की दृष्टि से असंख्यात किसी एक प्रकार से लोक को
सव्वमावण्णा
[(सव्वं)+ (आवण्णा)] सव्वं (सव्व) 2/1 सवि आवण्णा (आवण्ण) भूकृ 1/2 अनि
समस्त प्राप्त हुए
अन्वय- अणंता अगुरुलहुगा तेहिं अणंतेहिं सव्वे परिणदा देसेहिं असंखादा सियलोगं सव्वमावण्णा।
' अर्थ- (जीव) अनन्त अगुरुलघुगुण से युक्त (है), उन अनन्त (अगुरुलघुगुणों) के द्वारा समस्त (जीव) रूपान्तरित (हैं) (और) (वे जीव) प्रदेशों की दृष्टि से असंख्यात (प्रदेशी) है अर्थात् प्रत्येक जीव असंख्यात प्रदेशवाला होता है (किन्तु) किसी एक प्रकार से (कई जीव) समस्त लोक को प्राप्त हुए (हैं)।
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
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