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28. कम्ममलविप्पमुक्को उड्डे लोगस्स अंतमधिगंता।
सो सव्वणाणदरसी लहदि सुहमणिंदियमणंत।।
उड
कम्ममलविप्पमुक्को [(कम्म)-(मल)- कर्मरूपी मैल से
(विप्पमुक्को) भूकृ 1/1 अनि] छुटकारा पाया हुआ अव्यय
ऊपर की ओर लोगस्स (लोग) 6/1
लोक के अंतमधिगंता [(अंत)+(अधिगंता)]
अंतं(अंत) 2/1-7/1 अंत में अधिगंता (संकृ अनि) पहुँचकर (त) 1/1 सवि
वह सव्वणाणदरसी (सव्वणाणदरसी) 1/1 वि अनि सबको जानने
देखनेवाला (लह) व 3/1 सक रखता है सुहमणिंदियमणंतं [(सुह)+(अणिंदियं)+(अणंत)]
सुहं (सुह) 2/1 सुख को अणिंदियं (अणिंदिय) 2/1 वि अतीन्द्रिय अणंतं (अणंत) 2/1 वि अनन्त
लहदि
अन्वय- कम्ममलविप्पमुक्को सो सव्वणाणदरसी उड़े लोगस्स अंतमधिगंता अणिंदियं अणंत सुहं लहदि।
____अर्थ- (जो) (जीव) कर्मरूपी मैल से छुटकारा पाया हुआ (है) वह सबको जानने-देखनेवाला (हो जाता है)। (और) ऊपर की ओर लोक के अंत में पहुँचकर (भी) अतीन्द्रिय (और) अनन्त सुख को (बनाये) रखता है।
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कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) 'लहदि' पाठ विचारणीय है। संपादक द्वारा अनूदित
2. नोटः
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पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार