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27. जीवो त्ति हवदि चेदा उवओगविसेसिदो पहू कत्ता।
भोत्ता य देहमत्तो ण हि मुत्तो कम्मसंजुत्तो।।
जीव शब्दस्वरूपद्योतक होता है चेतना गुणवाला उपयोग से परिभाषित
जीवो त्ति [(जीवो)+ (इति)]
जीवो (जीव) 1/1
इति (अ) = हवदि (हव) व 3/1 अक चेदा (चेद) 1/1 वि उवओगविसेसिदो [(उवओग)-(विसेसिद)
भूकृ 1/1 अनि] (पहु) 1/1 वि
(कत्तु) 1/1 वि भोत्ता
(भोत्तु) 1/1 वि
अव्यय देहमत्तो (देहमत्त) 1/1 वि
अव्यय
अव्यय मुत्तो (मुत्त) 1/1 वि कम्मसंजुत्तो [(कम्म)-(संजुत्त)
भूक 1/1 अनि]
कत्ता
प्रभु (समर्थ) कर्ता भोक्ता और देह परिमाणवाला
कर्मों से युक्त
. अन्वय- जीवो त्ति चेदा उवओगविसेसिदो पहू कत्ता भोत्ता देहमत्तो हि मुत्तो ण य कम्मसंजुत्तो हवदि।
अर्थ- जीवः चेतना गुणवाला, उपयोग से परिभाषित, (अपने उत्थान के लिए) प्रभु (समर्थ), कर्ता, भोक्ता (और) देह परिमाणवाला (होते हुए) भी मूर्त नहीं (है) अर्थात् अमूर्त (है) और कर्मों से युक्त होता है।
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
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