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26.
णत्थि
चिरं
वा
खिप्पं
मत्तारहिदं
तु
सा
वि
खलु
मत्ता
पोग्गलदव्वेण
विणा
तम्हा
कालो
पडुच्चभवो
णत्थि चिरं वा खिप्पं मत्तारहिदं तु सा वि खलु मत्ता । पोग्गलदव्वेण विणा तम्हा कालो पडुच्चभवो ||
1.
2.
(36)
अव्यय
(चिर ) 1/1
.
नहीं है
दीर्घकाल
अथवा
शीघ्र
परिमाण के बिना
अव्यय
( खिप्प ) 1 / 1 वि
[ ( मत्ता) - (रहिद)
भूकृ 1/1 अनि]
अव्यय
(ता) 1 / 1 सवि
अव्यय
अव्यय
( मत्ता) 1 / 1
[ ( पोगल ) - ( दव्व ) 3 / 1]
अव्यय
अव्यय
इस कारण
(काल) 1/1
काल
[ ( पडुच्च) अ - ( भव) 1 / 1 वि] आश्रय करके उत्पन्न
अन्वय- मत्तारहिदं चिरं वा खिप्पं णत्थि तु सा मत्ता वि खलु पोग्गलदव्वेण विणा तम्हा कालो पडुच्चभवो ।
अर्थ- परिमाण के बिना दीर्घकाल अथवा शीघ्र नहीं ( कहा जा सकता) है और वह परिमाण भी निश्चय ही पुद्गल द्रव्य के बिना (संभव) (नहीं है)। इस कारणसे (जाना गया) काल (पुद्गल द्रव्य का) आश्रय करके उत्पन्न ( है ) ।
प्रायः समास के अन्त में 'के बिना' अर्थ को प्रकट करता है ।
'बिना' के योग में द्वितीया, तृतीया तथा पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है।
और
वह
भी
निश्चय ही
परिमाण
पुद्गल द्रव्य के
बिना
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार