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________________ 16. भावा जीवादीया जीवगुणा चेदणा य उवओगो। सुरणरणारयतिरिया जीवस्स य पज्जया बहुगा।। पदार्थों में भावा जीवादीया जीव जीवगुणा चेदणा (भाव) 2/2-7/2 [(जीव)+(आदी)+ (इया)] *जीव (जीव) 1/1 (मूलशब्द) आदी (आदि) 1/1 वि इया (इ) 2/2-7/2 भूक [(जीव)-(गुण) 1/2] (चेदणा) 1/1 अव्यय (उवओग) 1/1 [(सुर)-(णर)-(णारय)(तिरिय) 1/2] (जीव) 6/1 अव्यय (पज्जय) 1/2 (बहुग) 1/2 वि प्रथम/प्रमुख ज्ञात जीव के गुण चेतना और उपयोग देव, मनुष्य, नारकी और तिर्यंच जीव की और उवओगो सुरणरणारयतिरिया जीवस्स पज्जया पर्याय बहुगा अनेक अन्वय- इया भावा जीव आदी जीवगुणा चेदणा य उवओगो य जीवस्स सुरणरणारयतिरिया बहुगा पज्जया। अर्थ- ज्ञात पदार्थों में जीव प्रथम/प्रमुख (है)। (उस) जीव के गुण चेतना और उपयोग (हैं) और जीव की देव, मनुष्य, नारकी और तिर्यंच अनेक पर्यायें (हैं)। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पृष्ठ 517) (26) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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