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________________ 14. सिय अत्थि णत्थि उहयं अव्वत्तव्वं पुणो य तत्तिदयं। दव्वं खु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि।। सिय अव्यय अत्थि णत्थि किसी प्रकार से अस्ति नास्ति दोनों अवक्तव्य इसके अनन्तर उहयं अव्वत्तव्वं पुणो अव्यय अव्यय (उहय) 1/1 वि (अव्वत्तव्व) 1/1 वि अव्यय अव्यय (तत्तिदयं) 1/1 वि अनि (दव्व) 1/1 अव्यय (सत्तभंग) 2/1-7/1 [(आदेस)-(वस) 3/1 वि] तत्तिदयं और वह तीन का समूह दव्वं वस्तु सत्तभंग आदेसवसेण ही सात वाक्यों में प्रयोजनों/प्रश्न-उत्तर के कारण/अधीन प्रकट होती है संभवदि (संभव) व 3/1 अक प्रव अन्वय- दव्वं आदेसवसेण सत्तभंगं खु संभवदि सिय अत्थि णत्थि उहयं अव्वत्तव्वं य पुणो तत्तिदयं। __ अर्थ-वस्तु प्रयोजनों/प्रश्न-उत्तर के कारण/अधीन सात वाक्यों में ही प्रकट होती है। किसी प्रकार से अस्ति,(किसी प्रकार से) नास्ति,(किसी प्रकार से) दोनों (अस्तिनास्ति), (किसी प्रकार से) अवक्तव्य और इसके अनन्तर वह तीन का समूह (अस्ति अवक्तव्य,नास्ति अवक्तव्य,अस्तिनास्ति अवक्तव्य)(होती 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) (24) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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