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9.
दवियदि गच्छदि ताई ताई सब्भाव-पज्जयाई जं। दवियं तं भण्णंते अणण्णभूदं तु सत्तादो।।
दवियदि (दविय) व 3/1 सक गति करता है गच्छदि (गच्छ) व 3/1 सक प्राप्त करता है ताई (त) 2/2 सवि
उन ताई (त) 2/2 सवि
उन सब्भाव-पज्जयाई [(सब्भाव)-(पज्जय) स्वभाव पर्यायों को
2/2]]
अव्यय दवियं
(दविय) 1/1 (त) 1/1 सवि
वह भण्णंते । (भण्ण) व कर्म 3/2 अनि कहा जाता है अणण्णभूदं (अणण्णभूद) भूकृ 1/1 अनि अपृथक बना हुआ अव्यय
और सत्तादो (सत्ता) 5/1
सत्ता से
द्रव्य
अन्वय- जं ताई ताई सब्भावपज्जयाइं गच्छदि दवियदि तं दवियं तु सत्तादो अणण्णभूदं भण्णंते।
अर्थ- जो (पदार्थ) उन-उन (अपने) स्वभाव पर्यायों को प्राप्त करता है (उनमें) गति करता है, वह द्रव्य कहा जाता है। और (वह) (द्रव्य) सत्ता से अपृथक बना हुआ (होता है)।
1.
नाम क्रिया (संज्ञात्मक क्रिया) अभिनव प्राकृत व्याकरणः पृष्ठ 313 यहाँ ‘पज्जय' शब्द नपुंसकलिंग की तरह प्रयुक्त हुआ है। संपादक द्वारा अनूदित
2.
नोटः
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
(19)