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10.
दव्वं सल्लक्खणयं उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्तं ।
गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू ।।
दव्वं
सल्लक्खणयं
उप्पादव्वयधुवत्त
संजुत्त
गुणपज्जा
वा
जं
तं
भण्णंति
सव्वण्हू
(20)
(दव्व) 2/1
(सल्लक्खणय) 2/1 वि
'य' स्वार्थिक
[(उप्पाद) - (व्वय) - (धुवत्त) -
(संजुत्त) भूकृ 2 / 1 अनि ]
[(गुण) - (पज्जय) -
( आसय) 2 / 1 वि]
अव्यय
(ज) 2/1 सवि
(त) 2/1 सवि
(भण्ण) व 3/2 सक
(सव्वण्हु) 1 / 2 वि
द्रव्य
सत् लक्षणवाला
अन्वय- सव्वण्हू ं
उत्पाद,
व्यय और
व्यता से युक्
गुण- पर्याय का
आधार
तथा
जो
उस (पदार्थ) को
कहते हैं
सर्वज्ञ देव
तं दव्वं भण्णंति जं सल्लक्खणयं उप्पादव्वय
धुवत्तसंजुत्तं वा गुणपज्जयासयं ।
अर्थ- सर्वज्ञ देव उस (पदार्थ) को द्रव्य कहते हैं- जो सत् लक्षणवाला (है), (जो) उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यता से युक्त (है) तथा (जो ) गुण- पर्याय का
आधार (है)।
-अधिकार
पंचास्तिकाय ( खण्ड - 1 ) द्रव्य - 3