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7.
अण्णोणं'
पविसंता'
देता
ओगासमण्ण
मण्णस्स
य
णिच्चं
सगं
सभावं
ण
विजहंति
अण्णोण्णं पविसंता देंता ओगासमण्णमण्णस्स । मेलंता विय णिच्वं सगं सभावं ण विजहंति ।।
1.
मेलंता* (मिलन्ता) (मिल) वकृ 1 / 2
वि
अव्यय
अव्यय
अव्यय
( सग) 2 / 1 वि
( सभाव) 2 / 1
*
(अण्णोण्ण) 2/1-7/1 वि परस्पर / एक दूसरे में प्रवेश करते हुए
( पविस) वक्र 1 / 2
देते हुए
(दे) वकृ 1/2
[(ओगासं)+(अण्णमण्णस्स )] ओगासं (ओगास) 2/1
-
स्थान
अण्णमण्णस्स(अण्णमण्ण) 4 / 1 वि एक दूसरे के लिए
मिलते हुए
अव्यय
(विजह ) व 3 / 2 सक
अन्वय
मेलंता वि सगं सभावं ण विजहंति ।
अर्थ- (द्रव्य) परस्पर / एक दूसरे में प्रवेश करते हुए, एक दूसरे के लिए स्थान देते हुए और सदैव मिलते हुए भी (वे) अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते
हैं।
भी
और
सदैव
अपने
स्वभाव को
नहीं
छोड़ते हैं
अण्णोणं पविसंता अण्णमण्णस्स ओगासं देंता य णिच्चं
पंचास्तिकाय ( खण्ड - 1 ) द्रव्य - अधिकार
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। ( हेम - प्राकृत - व्याकरणः 3 - 137 ) या गत्यार्थक क्रिया के योग में द्वितीया भी होती है।
यहाँ पाठ मिलन्ता होना चाहिए।
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