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6. ते चेव अत्थिकाया तेक्कालियभावपरिणदा णिच्चा।
गच्छंति दवियभावं परियट्टणलिंगसंजुत्ता।।
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अत्थिकाया तेक्कालियभाव- परिणदा
(त) 1/2 सवि अव्यय (अत्थिकाय) 1/2 वि [(तेक्कालिय) वि-(भाव)- (परिणद) भूकृ 1/2 अनि]
निश्चय ही अस्तिकाय । तीन काल में उत्पन्न पर्यायों में परिवर्तित
हुए
णिच्चा गच्छंति दवियभावं परियट्टणलिंग- संजुत्ता
(णिच्च) 1/2 वि (गच्छ) व 3/2 सक [(दविय)-(भाव) 2/1] [(परियट्टण)-(लिंग)- (संजुत्त) भूकृ 1/2 अनि]
शाश्वत प्राप्त करते हैं द्रव्य के स्वभाव को परिणमन लक्षण से युक्त
अन्वय- तेक्कालियभावपरिणदा ते अत्थिकाया परियट्टणलिंगसंजुत्ता णिच्चा चेव दवियभावं गच्छंति।
अर्थ- तीन काल में उत्पन्न पर्यायों में परिवर्तित हुए वे अस्तिकाय (बहु प्रदेशी अस्तित्ववाले पदार्थ) परिणमन लक्षण (चिह्न) से युक्त (हैं) (और) शाश्वत (है)। (इसलिए) निश्चय ही द्रव्य के स्वभाव को प्राप्त करते हैं।
1.
संपादक द्वारा अनूदित
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पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार