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समवाओ पंचण्हं समओ त्ति जिणुत्तमेहिं पण्णत्तं। सो चेव हवदि लोओ तत्तो अमिओ अलोओ खं।।
समवाओ पंचण्हं समओ त्ति
जिणुत्तमेहिं
पण्णत्तं
(समवाअ) 1/1
समूह (पंच) 6/2 वि
पाँच का [(समओ) + (इति)] समओ (समअ) 1/1
समय (एक प्रदेशी
काल द्रव्य) इति (अ) =
शब्दस्वरूपद्योतक [(जिण)+ (उत्तमेहिं)] [(जिण)-(उत्तम) 3/2 वि] जिनों में श्रेष्ठ द्वारा (पण्णत्त) भूकृ 1/1 अनि कहा गया (त) 1/1 सवि
अव्यय (हव) व 3/1 अक होता है (लोअ) 1/1
लोक अव्यय
उसके बाद (अमिअ ) 1/1 वि परिमाण-रहित (अलोअ) 1/1
अलोक (ख) 1/1
आकाश
वह
हवदि लोओ तत्तो अमिओ अलोओ
अन्वय- जिणुत्तमेहिं पण्णत्तं पंचण्हं समवाओ समओ त्ति सो चेव लोओ हवदि तत्तो अमिओ अलोओ खं।
अर्थ- जिनों में श्रेष्ठ (तीर्थंकर) द्वारा (यह) कहा गया (है) (कि) (जो) पाँच (बहुप्रदेशी द्रव्यों) का समूह (और) समय (एक प्रदेशी काल द्रव्य) (है) वह ही लोक होता है। उसके बाद परिमाण-रहित अलोक (नामक) आकाश (होता
है)।
नोटः
संपादक द्वारा अनूदित इसका अनुवाद परम्परा से भिन्न किया गया है, विद्वान विचार करें।
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
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