SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 96. धम्माधम्मागासा अपुधब्भूदा समाणपरिमाणा। पुधगुवलद्धिविसेसा करेन्ति एगत्तमण्णत्तं।। धम्माधम्मागासा [(धम्म)-(अधम्म)- धर्म, अधर्म और (आगास) 1/2] आकाश द्रव्य अपुधब्भूदा [(अपुध)-(भूद) अभिन्न बने हुए भूक 1/2 अनि समाणपरिमाणा [(समाण)-(परिमाण) 5/1] समान परिमाण के कारण पुधगुवलद्धिविसेसा [(पुधग) वि-(उवलद्धि)- पृथक गुण के कारण (विसेस) 1/2 वि विशिष्ट करेन्ति (कर) व 3/2 सक (उत्पन्न) करते हैं एगत्तमण्णत्तं [(एगत्तं)+(अण्णत्तं)] एगत्तं (एगत्त) 2/1 एकरूपता को अण्णत्तं (अण्णत्त) 2/1 पृथकता को अन्वय- धम्माधम्मागासा समाणपरिमाणा अपुधब्भूदा पुधगुवलद्धिविसेसा एगत्तं अण्णत्तं करेन्ति। अर्थ- धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य समान परिमाण के कारण अभिन्न बने हुए (हैं) (तथा) पृथक गुण के कारण विशिष्ट (हैं) (इसलिए) (वे) (परिमाण के कारण) एकरूपता को (और) (गुण के कारण) पृथकता को (उत्पन्न) करते हैं। नोटः संपादक द्वारा अनूदित (106) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy