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________________ 95. तम्हा धम्माधम्मा गमणट्ठिदिकारणाणि णागासं। इदि जिणवरेहिं भणिदं लोगसहावं सुणताणं।। तम्हा इसलिए गति और स्थिति में कारण णागासं अव्यय धम्माधम्मा [(धम्म)-(अधम्म) 1/2] गमणट्टिदिकारणाणि [(गमण)-(छिदि) (कारण) 1/2] [(ण)+(आगासं)] ण (अ) = नहीं आगासं (आगास) 1/1 अव्यय जिणवरेहिं (जिणवर) 3/2 भणिदं . (भण) भूकृ 1/1 लोगसहावं [(लोग)-(सहाव) 1/1] (सुण) वकृ 4/2 नहीं आकाश द्रव्य इस प्रकार जिनवरों के द्वारा कहा गया लोक-स्वभाव सुनते हुए (श्रद्धालुओं) के लिए सुणंताणं अन्वय- तम्हा धम्माधम्मा गमणट्ठिदिकारणाणि आगासं ण इदि जिणवरेहिं सुणंताणं लोगसहावं भणिदं। अर्थ- इसलिए धर्म, अधर्म द्रव्य (क्रमशः) गति और स्थिति में कारण (है) (तथा) आकाश द्रव्य (गति और स्थिति में कारण) नहीं (है)। इस प्रकार जिनवरों के द्वारा सुनते हुए (श्रद्धालुओं) के लिए लोक-स्वभाव कहा गया (है)। नोटः यहाँ ‘सहाव' शब्द नपुंसकलिंग की तरह प्रयुक्त हुआ है। पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (105)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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